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Reviews & References

 

This section offers the scholarly perspective on the literary works of late Professor Syed Hasan Askari.

SHAHNAMA REVIEW BY FRITZ LEHMAN.JPG
Fort William India House Review02 05 201
A Rare and Unique Eighth Century Arabic
Medieval India a miscellany 04 09 2019.J
Taj Ul Maasir 04 09 2019.JPG
Tpurism perspective in bihar.JPG
MADARIYA SILSILA 09 17 2019.JPG
Comp History of Bihar Razi Aqil 12 12 20
Gleanings from a Unique Manuscript of Ep
2023 SF BOOK REVIEW 12 22 2023.JPG
7. Aspects of the Cultural History of Medieval Bihar by Professor Syed Hasan Askari.jpg

Prof. Shubhneet Kaushik visited KPJRI and authored the following book review in Hindi language and posted it on his FB Page (https://www.facebook.com/1474115937/posts/10231517297983615/) on February 3rd, 2024.

“Aspects of the Cultural History of Medieval Bihar” by Professor Syed Hasan Askari* The synthesizing role of the Muslim poets of Hindi* Sufism and Hinduism interaction between the two* The City of Patna - Etymology of Place-NamesPublished by Kashi Prasad Jayswal Research Institute, Patna, India, 1984

 

पटना का इतिहास और इतिहासकार सैयद हसन अस्करी पटना शहर और मध्यकालीन बिहार के इतिहास के बारे में जितनी गहराई से और जिस परिमाण में इतिहासकार सैयद हसन अस्करी ने लिखा है, वह बेमिसाल है। चालीस बरस पहले नवम्बर 1983 में सैयद हसन अस्करी ने दूसरे काशी प्रसाद जायसवाल स्मारक व्याख्यानमाला के अंतर्गत तीन विचारोत्तेजक व्याख्यान दिए थे। जिसमें उन्होंने पटना शहर और उसके विभिन्न इलाक़ों के इतिहास, शहर और उसके चुनिंदा जगहों की नामों की व्युत्पत्ति के दिलचस्प इतिहास पर रोशनी डाली थी। उल्लेखनीय है कि काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान द्वारा 1982 में शुरू की गई इस महत्त्वपूर्ण व्याख्यानमाला के पहले वक्ता इतिहासकार दिनेश चंद्र सरकार रहे थे। सैयद हसन अस्करी अपने व्याख्यानों में पटना की कहानी महाजनपद काल में अजातशत्रु द्वारा बसाए पाटलि ग्राम से शुरू करते हैं। इसी क्रम में वे उन्नीसवीं सदी के आख़िरी दशक में डॉ. स्पूनर और पीसी मुखर्जी और आगे चलकर मैकक्रिंडल, कर्नल वाडेल और एमआर घोष जैसे पुराविदों द्वारा पटना के आसपास के इलाक़ों जैसे कुम्हरार, लोहानीपुर, कंकड़बाग, पाँच पहाड़ी, बुलंदी बाग में किए गए उत्खननों की चर्चा करते हैं। वे मौर्य और गुप्त काल में पाटलिपुत्र (कुसुमपुरा, पद्मावती, पुष्पपुरा) के भाग्य के अपने उत्कर्ष पर पहुँचने और फिर धीरे-धीरे उसके पतन की कहानी भी बताते हैं। वे पाठकों को चीनी यात्रियों फाहियान ह्वेन सांग द्वारा वर्णित पाटलिपुत्र (पा-लिएन-फू) की स्थिति से भी अवगत कराते हैं। सोलहवीं सदी में शेरशाह सूरी के शासनकाल में वे पटना के भाग्योदय की विस्तार से चर्चा करते हैं। सत्रहवीं सदी में अब्दुल्ला फ़िरोज़ जंग की सूबेदारी के समय पटना के क़िलेबंद शहर के रूप में तब्दील होने और उसकी चारों दिशाओं में विशाल द्वारों और हैबत जंग द्वारा खाइयाँ खुदवाने और पुलों के निर्माण की प्रक्रिया को भी वे रेखांकित करते चलते हैं। आगे चलकर मोहम्मद अज़ीम ने न केवल पटना का नाम अज़ीमाबाद रखा, बल्कि शहर को उसने चार हिस्सों में बाँटा – दीवान मुहल्ला, मुग़लपुरा, लोदीकटरा और धवलपुरा। वे पीटर मंडी, जॉन मार्शल, बुकानन, बिशप हेबर द्वारा वर्णित पटना की भी चर्चा करते हैं। साथ ही, वे पटना के महत्त्वपूर्ण मंदिरों, मस्जिदों, दरगाहों, मक़बरों के इतिहास से भी हमें रूबरू कराते हैं।  अपने इन्हीं व्याख्यानों में जहाँ सैयद हसन अस्करी हिंदी के मुस्लिम कवियों के साहित्यिक और सांस्कृतिक अवदान को बताते हैं, वहीं वे सूफ़ीवाद व हिंदू धर्म के बीच परस्पर अंतःक्रिया को भी विस्तार से वर्णित करते हैं। वे ‘संदेश रासक’ के रचयिता अब्दुर्रहमान, मौलाना दाऊद, साधन, मालिक मुहम्मद जायसी, क़ुतुबन के बारे में लिखते हैं। उल्लेखनीय है कि मनेर के खानकाह से जायसी के ‘पद्मावत’ और साधन कृत ‘मैनासत’ की दुर्लभ पांडुलिपियों को खोजने का श्रेय सैयद हसन अस्करी को जाता है। सूफ़ी मत और हिंदू धर्म के बीच अंतःक्रिया के बारे में बताते हुए सैयद हसन अस्करी सईदउद्दीन महमूद द्वारा लिखे ‘गुलशन-ए-राज़’ और सैयद राजा के दीवान में आए दार्शनिक प्रसंगों के हवाले से सांस्कृतिक आदान-प्रदान को रेखांकित करते हैं। भारत की इस सांस्कृतिक विविधता को रेखांकित करते हुए वे जायसी की इन पंक्तियों का हवाला देते हैं : ‘विधना के मारग हैं तेते, सरग नखत रोआँ जेते’। सैयद हसन अस्करी के ये व्याख्यान काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान ने ‘आसपेक्ट्स ऑफ़ द कल्चरल हिस्ट्री ऑफ़ मिडाइवल बिहार’ शीर्षक से छापा है। ज़रूर पढ़ें।

 

******Patna's history and historian Syed Hassan Askari. The depth about the history of Patna city and medieval Bihar and the extent in which historian Syed Hassan Askari has written is unmatched. Forty years ago in November 1983 Syed Hassan Askari gave three thought provoking lectures under the second Kashi Prasad Jaiswal Memorial Lecture. In which they shed light on the interesting history of Patna city and its various areas, the city and its names of its selected places. Notable that the first speaker of this important lecture started by Kashi Prasad Jaiswal Research Institute in 1982 was historian Dinesh Chandra Sarkar.Syed Hassan Askari starts the story of Patna in his lectures from Patli village settled by Ajatshatru during Mahajanpad period. Meanwhile they were drs in the last decade of the nineteenth century. Spooner and PC Mukherjee and onward discuss excavations done by architects like McCrindal, Colonel Wadel and MR Ghosh in the surrounding areas of Patna like Kumharar, Lohanipur, Kankadbagh, Panch Pahadi, Bulandi Bagh. They also narrate the story of Pataliputra (Kusumpura, Padmavati, Pushpura)'s fate in Maurya and Gupt period and then slowly tell the story of his downfall. They also inform readers about the situation of Pataliputra (Pa-lian-fu) described by Chinese passengers Fahian Hwen Sang.During the reign of Shershah Suri in the sixteenth century, they discuss the Bhagyodaya of Patna. They also line up the process of transforming as a Qileband city of Patna during the seventeenth century Abdullah Firoz Jung and construction of bridges by huge doors and Habat Jung in its all directions. Going forward Mohammad Azim not only named Patna Azimabad, but he distributed the city in four parts - Deewan Muhalla, Mughalpura, Lodikatra and Dhawalpura. They also discuss Patna narrated by Peter Mandi, John Marshall, Buchanan, Bishop Heber. At the same time, they also introduce us to the history of important temples, mosques, shrines, tomb of Patna.In his lectures where Syed Hassan Askari describes the literary and cultural contributions of Hindi Muslim poets, he also describes the interaction between Sufism and Hinduism in detail. They write about Abdurrahman, Maulana Dawood, Sadhan, Malik Muhammad Jaisi, Qutuban, the author of 'Mandesh Rasak'. Notable that the credit goes to Syed Hassan Askari for finding the rare manulipulations of Jayasi's 'Padmavat' and Sadhan Krit 'Mainasat' from Maner's Khankah.Syed Hasan Askari lines cultural exchange on the philosophy of 'Gulshan-e-Raz' written by Syeduddin Mahmood and the philosophy of Syed Raja' explaining the interaction between Sufi Mat and Hinduism. Documenting this cultural diversity of India, they quote these lines of Jayasi: 'Dhina ke marag hai tete, sarg nakhat roaan jete'.Syed Hasan Askari's lecture has been raided by Kashi Prasad Jaiswal Research Institute titled 'Aspects of the Cultural History of Midival Bihar'. Must read.

Compilation in progress.....

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